बेहतर है देश छोड दिया जाए: भगतान में बकाए पर टेलीकॉम कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट की फटकार


 


 


 


नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर वैधानिक बकाये का भगतान में देरी को लेकर टेलीकॉम कंपनियों को कड़ी फटकार लगाई हैसुप्रीम कोर्ट ने समायोजित सकल राजस्व के बकाये का भुगतान करने के आदेश का अनुपालन न करने पर दूरसंचार कंपनियों को फटकार लगाई। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने दूरसंचार एवं अन्य कंपनियों के निदेशकों, प्रबंध निदेशकों से पूछा कि एजीआर बकाये के भुगतान के आदेश का अनुपालन नहीं किए जाने को लेकर उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों नहीं की जाए? एजीआर मामले में आदेश पर अमल नहीं होने पर सप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें नहीं मालम कि कौन ये बेतकी हरकतें कर रहा है, क्या देश में कोई कानुन नहीं बचा है। कोर्ट ने दरसंचार विभाग के डेस्क अधिकारी के उस आदेश पर अफसोस जताया, जिससे एजीआर मामले में दिये गये फैसले के अनुपालन पर रोक लगी ।एजीआर मामले में आदेश पर अमल नहीं होने पर न्यायालय - ने कहा कि बेहतर है कि इस देश में न रहा जाए और देश छोड़ दिया जाए। हमने एजीआर मामले में समीक्षा याचिका खारिज कर दी, लेकिन इसके बाद भी एक भी पैसा जमा नहीं किया गया न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने कहा कि यदि एक डेस्क अधिकारी न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने की धृष्टता करता है तो फिर उच्चतम न्यायालय को बंद कर ही दीजिये। कोर्ट ने यह भी कहा कि देश में जिस तरह से चीजें हो रही हैं, इससे हमारी अंतरआत्मा हिल गयी है । बता दें कंपनियों ने एजीआर वैधानिक बकाये का भुगतान करने के लिए दो साल की रोक के साथ 10 साल का समय देने की मांग की थी। उच्चतम न्यायालय ने अक्तूबर में सरकार द्वारा दूरंसचार कंपनियों से उन्हें प्राप्त होने वाले राजस्व पर मांगे गये शुल्क को जायज ठहराया था। कंपनियों ने एजीआर वैधानिक बकाये का भुगतान करने के लिए दो साल की रोक के साथ 10 साल का समय देने की मांग की थी। उच्चतम न्यायालय ने अक्तूबर में सरकार द्वारा दुरंसचार कंपनियों से उन्हें प्राप्त होने वाले राजस्व पर मांगे गये शुल्क को जायज ठहराया था। रिलायंस जियो ने 31 जनवरी 2020 तक एजीआर से जुड़े सभी बकाया भुगतान के लिए दूरसंचार विभाग को 195 करोड़ रुपये दिया। आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी। वर्ष 2016 में जियो अपनी सेवाएंशुरू की थी और मुफ्त कॉल की सुविधा देकर दूरसंचार क्षेत्र में तहलका मचा दिया था। कंपनी महज तीन साल में 30 करोड़ उपभोक्ताओं को अपने साथ जोड़ चुकी है। उच्चतम न्यालय द्वारा एजीआर चुकाने के फैसले के बाद गैर-दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियों पर भी 2.4 लाख करोड़ रुपये की देनदारी बनती है। इनमें गेल इंडिया लिमिटेड, पावर ग्रिड आदि भी शामिल हैं। इन कंपनियों ने ऑप्टिक फाइबर केबल पर ब्रांडबैंड चलाने के लिए लाईसेंस लिया हुआ है। गेल की देशभर में फैली पाइपलाइन के साथ और पावर ग्रिड की पारेषण लाइनों के साथ यह केबल चलती है। उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद दूरसंचार विभाग ने गेल इंडिया से 1.72 लाख करोड़ रुपये का सांविधिक बकाया मांगा है। ठीक ऐसे ही पावरग्रिड पर 21 हजार करोड़ रुपये और आयल इंडिया से 48 हजार करोड़ रुपये की बकाया की मांग की है।